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महाराष्ट्र की सत्ता में अब एकनाथ शिंदे की जरूरत नहीं है?

विजय यादव
महाराष्ट्र
की राजनीति में आए बदलाव ने देश में भूचाल मचा दिया है। मीडिया में भी तरह तरह को खबरें आ रही हैं, मीडिया का खेमा इसे नरेंद्र मोदी का करिश्मा बता रहा है तो दूसरा पक्ष इसे राजनीतिक तोड़फोड़ सिद्ध करने में जुटा है। बात चाहे जो हो, हकीकत चाहे जो हो, लेकिन एक बात तो पक्की है कि, यह सब बहुत आसानी से तो नहीं हुआ है। कल तक जो भाजपा को कोसते नही थकते थे, जो प्रधानमंत्री की मिमिक्री कर खिल्ली उड़ाते थे, आज उनकी जुबान तारीफों के पुल बांध रहे हैं।
यह नेता माने या नहीं माने इस पूरे खेल के पीछे उन सरकारी संस्थानों का हाथ जरूर है, जिनकी वजह से इनमे कुछ लोग जेल की हवा खा चुके हैं और आगे भी जाने की तैयारी थी। छगन भुजबल, अजीत पवार और हसन मुश्रिफ के खिलाफ ED, IT, CBI, की कारवाई किसी से छुपी नहीं है। 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने NCP को लेकर क्या कुछ कहा था, उसे आप एक बार जरूर सुन लें। (वीडियो News stand18 के YouTube channel पर उपलब्ध है।)

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प्रधानमंत्री ने किस कदर उस NCP पर आरोप लगाए हैं, जिनके नेता आज महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बन गए हैं। अब सवाल यह उठता है कि जो दल इतना भ्रष्ट था, आज अचानक पाक साफ कैसे हो गया। हम इस पर आगे चर्चा करें कि, इसके पहले आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता चलूं। यह कहानी खासकर उत्तर भारत के हिंदी प्रदेशों में काफी प्रचलित है। कहानी ऐसी है, एक गांव में गधा मरा पड़ा था, जिसे गांव के कुछ बच्चे घसीट रहे थे। यह बात गांव के पंडित जी तक पहुंची। पंडित जी बताया इस हरकत से तो इन सभी को बड़ा पाप लगा है, पाप से बचने के लिए सभी को यज्ञ पूजा करानी होगी। लोगों को भोजन कराना होगा। बच्चों के परिवार वाले बहुत चिंतित हो गए। तभी एक व्यक्ति ने बताया पंडित जी इन्ही बच्चों में आपका बेटा संतोष भी था। बस फिर क्या था, पंडित जी इतना सुनते ही बोले, जहां संतोष, वहां कोई नहीं दोष। सारा यज्ञ पूजा उपाय रद्द।
कहने का मतलब आप सभी समझ गए होंगे। जब तक यह नेता विपक्ष में थे तब तक आरोपी थे, अब साथ में आ गए हैं तो सारा पाप खत्म। अब आइए आपको एक एक कर इन सभी पर लगे आरोपों को बता दूं।
अजित-भुजबल-मुश्रीफ के खिलाफ ED में केस चल रहा है, इनमे कोई जमानत पर है तो किसी का केस कोर्ट में पेंडिंग चल रहा है।
पहला नाम है अजित पवार का। कोऑपरेटिव बैंक घोटाले में अभी इन पर जांच जारी है। अजित पवार के खिलाफ महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक से दिए गए लोन में अनियमितताओं के आरोप हैं। एक जनहित याचिका के आधार पर इकोनॉमिक ऑफेंस विंग (EOW) जांच कर रही है।
इसी मामले में ED ने भी मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया है। हालांकि सितंबर 2020 में EOW ने स्पेशल कोर्ट में कहा कि उन्हें अजित के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं मिला और केस में क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी।
ED ने इसका विरोध किया, लेकिन कोर्ट ने आपत्ति खारिज कर दी। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि EOW ने केस बंद कर दिया है तो ED भी आगे जांच नहीं कर सकती।
तब राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विकास अघाड़ी की सरकार थी, लेकिन स्पेशल कोर्ट क्लोजर रिपोर्ट पर कोई फैसला करती, उसके पहले राज्य में सरकार बदल गई। इस पर EOW ने भी अपना स्टैंड बदला और अक्टूबर 2022 में कोर्ट से कहा कि वह जांच जारी रखना चाहती है।
अभी EOW की जांच चल रही है। हालांकि अभी चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है। इस बीच, ED ने अप्रैल में अपनी जांच में आरोप पत्र दायर किया।
बैंक से लोन लेने वाली चीनी सहकारी समितियों को खरीदने वाली कुछ कंपनियों में अजित की भूमिका का ED के आरोप पत्र में बड़े पैमाने पर उल्लेख किया गया था, लेकिन अजित को मामले में आरोपी नहीं बनाया गया है।
हालांकि उनसे जुड़ी एक कंपनी को मामले के सिलसिले में अप्रैल में नामित किया गया था। यह पूछे जाने पर कि उनका नाम क्यों नहीं लिया गया, पवार ने कहा था कि जांच अभी भी जारी है और उन्हें क्लीन चिट नहीं दी गई है। अजीत पवार पर सिंचाई घोटाले का भी आरोप है, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में कर चुके हैं, जिसका वीडियो हमने आपको पहले ही सुना दिया है। अजित पवार कांग्रेस-NCP सरकार में जल संसाधन मंत्री और विदर्भ इरिगेशन कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष थे, तब सिंचाई परियोजनाओं में घोटाले के आरोप लगे थे। जनहित याचिकाओं के आधार पर महाराष्ट्र ACB ने इन मामलों की कोर्ट की निगरानी में जांच शुरू की। हालांकि 2019 में देवेंद्र फडणवीस के साथ तीन दिन की सरकार बनाने के एक दिन बाद, ACB ने उन्हें क्लीन चिट देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्हें क्लीनचिट दे दी गई। हालांकि रिपोर्ट को अभी कोर्ट ने मंजूर नहीं किया है। जब महाविकास अघाड़ी सत्ता में आई तो कुछ बीजेपी नेताओं ने मामले की दोबारा जांच की मांग शुरू कर दी।
अब बात करते हैं हसन मुश्रीफ की। मुश्रीफ 11 जुलाई तक अंतरिम जमानत पर हैं।
हसन के खिलाफ सर सेनापति संताजी घोरपड़े शुगर फैक्ट्री लिमिटेड और उनके परिवार से जुड़ी कंपनियों के कामकाज में कथित अनियमितताओं के सिलसिले में मुंबई में ED की जांच चल रही है।
मुंबई की विशेष कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट में अपनी दलीलों में मुश्रीफ ने कहा था कि उनके खिलाफ केस एक साजिश थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें ED मामलों में शामिल करने की जानबूझकर कोशिश की गई और सभी जानते हैं कि हाल के दिनों में ED का उपयोग राजनीतिक बदला लेने और नुकसान पहुंचाने या राजनीतिक करियर को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए किया जाता है।
मुश्रीफ की अग्रिम जमानत याचिका अप्रैल में विशेष कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने उनकी अंतरिम राहत बढ़ा दी। पिछले हफ्ते इसे 11 जुलाई तक बढ़ा दिया गया था। इसी केस में ED उनके तीन बेटों के खिलाफ भी जांच कर रही है। इनकी अग्रिम जमानत याचिकाएं स्पेशल कोर्ट में पेंडिंग हैं।
अब आइए छगन भुजबल के मामले पर भी चर्चा कर लेते हैं। छगन भुजबल दो साल जेल में रहे, अब जमानत पर हैं।
2006 में तीन परियोजनाओं के लिए 100 करोड़ रुपए से अधिक के ठेके देने में कथित अनियमितताओं की जांच की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट में एक PIL दायर हुई थी। इसके बाद एंटी करप्शन ब्यूरो ने भुजबल और 16 अन्य के खिलाफ 2015 में मामला दर्ज किया था। तब भुजबल राज्य के PWD मंत्री थे। दिल्ली में महाराष्ट्र सदन, अंधेरी में नया RTO ऑफिस और मालाबार हिल में एक गेस्ट हाउस बनाने के लिए चमनकर डेवलपर्स को ठेके दिए गए थे। ED ने मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाते हुए एक अलग केस दर्ज किया था। एजेंसी ने मामले में भुजबल को गिरफ्तार किया। दो साल जेल में रहने के बाद 2017 में उन्हें जमानत दे दी गई।
सितंबर 2021 में, जब महाराष्ट्र विकास आघाड़ी सत्ता में थी, तब एक विशेष कोर्ट ने भुजबल और अन्य को बरी कर दिया था। इस साल जनवरी में एक कार्यकर्ता ने कोर्ट के आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की, यह अभी पेंडिंग है।
मुंबई विश्वविद्यालय भ्रष्टाचार मामले के संबंध में ACB ने एक केस दर्ज किया। यह स्पेशल कोर्ट में पेंडिंग है। भुजबल ने डिस्चार्ज याचिका दायर की है, जिस पर फिलहाल सुनवाई चल रही है।
अब आइए इसके पीछे के असली खेल को समझते हैं। भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि, इन नेताओं के सहारे महाराष्ट्र में अच्छा खासा वोट बैंक तैयार किया जा सकता है। विशेषतौर पर अजीत पवार के सहारे मराठा वोट को अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। महाराष्ट्र के भीतर बीजेपी में मराठा समाज का कोई मजबूत चेहरा नहीं है। इनके पास जो एक देवेंद्र फडणवीस का प्रभावशाली चेहरा सामने है वह ब्राह्मण समाज से आते हैं। महाराष्ट्र में अब तक मराठा समाज का वर्चस्व कायम रहा है। ज्यादातर मुख्यमंत्री मराठा समाज से बने। अभी तक BJP की तरफ मराठा मतदाता का पूर्ण रूप से झुकाव नहीं दिखाई देता है। अजीत पवार अपने मराठा कोर वोट बैंक को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि उनके BJP खेमे में जाने पर यह वोट भाजपा को मिलेगा या नहीं। अजित पवार ने एक तरह से यह रिस्क लिया है। BJP को एकनाथ शिंदे के बाद अजीत पवार का साथ मिलने से मराठाओं के बीच इनकी पकड़ क्या मजबूत हो जाएगी? यह सवाल अभी भी बना हुआ है। क्योंकि राज्य के बड़ी संख्या में मराठा समाज का अटूट विश्वास शरद पवार के साथ जुड़ा है।
एकनाथ शिंदे BJP की उम्मीद से काफी कम शिवसेना के वोटर तोड़ पाए हैं। BJP पिछले एक साल के दौरान महाराष्ट्र में हुए तकरीबन सभी उपचुनाव हार गई। विधानपरिषद के दो चुनाव में BJP बुरी तरह हारी। विधानसभा में भी कसवापेट, पुणे, कोल्हापुर जैसी सीटों पर BJP को उम्मीद के हिसाब से वोट नहीं मिले।
पार्टी को लगता है कि अकेले एकनाथ शिंदे के बूते महाराष्ट्र में पैर जमाना मुमकिन नहीं। इसलिए वह बार-बार ऐसे प्रयोग कर रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में BJP और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा और उसे 48 में 42 सीट मिली थीं। BJP अभी की स्थिति में महाराष्ट्र में अपने आप को कमजोर पा रही थी। इसकी वजह है कि महा विकास अघाड़ी 60% वोटों को प्रभावित कर सकता है।
महाराष्ट्र में अभी भी तमाम लोगों में उद्धव ठाकरे को लेकर सहानुभूति है। कुछ लोग पवार की सेक्युलर इमेज की वजह से उनके साथ हैं। दूसरी तरफ प्रदेश में तमाम ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो वोटों का ध्रुवीकरण करेंगी। उस पर यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा भी रहेगा। कुल मिलाकर इससे BJP को सबसे ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है।
अब आंकड़ों से समझते हैं कि महाराष्ट्र की सियासी पार्टियों को तोड़कर बीजेपी को कैसे फायदा होगा…
मई में महाराष्ट्र के एक अखबार ने विधानसभा चुनाव को लेकर सर्वे किया था। मौजूदा सियासी गणित को समझने के लिए ये सर्वे की सबसे लेटेस्ट इनसाइट है। सर्वे से साफ दिख रहा है कि 2019 के मुकाबले BJP के वोट शेयर में 8.05% का इजाफा हो रहा है। वहीं उद्धव की शिवसेना का वोट शेयर 16.41% से गिरकर 12.5% हो रहा है। यानी शिवसेना में टूट के बाद 5% वोट BJP के पाले में एकनाथ शिंदे ले आएंगे। अगर हम इसी मॉडल को NCP पर लागू कर दें तो BJP को कम से कम 10% वोट का फायदा होगा।
यह तो रही आंकड़ों और अंदाज की बात। क्या हकीकत में राज्य का मराठा समाज अजीत पवार के पीछे चलते हुए शरद पवार को छोड़ भाजपा का साथ देगा। यह आने वाला समय ही बता सकता है।
इसी के साथ आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद। अगले एपिसोड में फिर मिलेंगे एक और नए विषय के साथ।
तब तक के लिए
जय हिन्द

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