राज कुमार सोनी
सागर। ‘ मन ही मुक्ति का कारण है और बंधन का भी। मन को यदि संसार की ओर मोड़ोगे, तो बंधन होगा और भगवान की ओर मोड़ोगे, तो मुक्ति प्राप्त होगी। इसीलिए तो विव्दतजनों ने कहा है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’, यह अमृतमय उद्गार सुप्रसिद्ध कथा-व्यास पं. मनोज व्यास ‘मधुर’ जी महाराज ने सागर के बड़ा बाजार स्थित रामबाग मंदिर में गुप्ता परिवार व्दारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पावन कार्यक्रम में बुधवार को तीसरे दिवस प्रवचन करते हुए व्यक्त किए। कार्यक्रम के संयोजक लक्ष्मी गुप्ता, संतोष गुप्ता, कंचन गुप्ता, कृष्णमुरारी (पप्पू) गुप्ता, स्व. चांदनी गुप्ता, जीतेंद्र गुप्ता, मौसम गुप्ता, बसंत गुप्ता हैं, जबकि कथा के मुख्य यजमान मिथिलेश गुप्ता और स्व. रामकृष्ण गुप्ता हैं। महंत घनश्यामदासजी महाराज के पावन सानिध्य में 29 मई से आरंभ हुए इस ज्ञान-अनुष्ठान का समय रोजाना दोपहर 4 से शाम 7 बजे तक है। कथा की पूर्णाहुति 5 जून को होगी। कार्यक्रम में हरेक दिन भक्तिरसपान करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। बुधवार को हुई कथा में व्यास जी ने सुखी जीवन के सूत्र समझाते हुए कहा कि भगवान से धन केवल उतना ही मांगो, जिसमें आवश्यकताएं पूरी हो जाएं। धन के ज्यादा बढ़ने से लोभ, क्रोध, दोष, कामना, झूठ, हिंसा आदि 15 तरह के विकार पनपते हैं। इसलिए प्रभु से धन कम, तन मध्यम और मन बड़ा मांगो, तभी स्वस्थ और सुखी रहोगे।