न्यूज स्टैंड18 नेटवर्क
मुंबई। आर्थिक-औद्योगिक सांस्कृतिक विकास के लिए काम कर रही संस्था पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान ने जफराबाद के मनहेच किले के विकास के लिए जन अभियान की शुरुआत की है। रविवार, 16 अप्रैल को इस निमित्त मुंबई के कांदिवली स्थित ठाकुर विलेज में बुलाई गयी एक जन संकल्प सभा में कहा गया कि यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि जफराबाद और जौनपुर में इस्लामी हुकूमत के तो अनेक प्रतीक, चिह्न और स्मृति स्थल हैं, लेकिन उनके पुराने इतिहास और संस्कृति के कोई भी प्रतीक, चिह्न और स्मृति स्थल नहीं हैं, और यदि कोई हैं भी तो वे विस्मृति के गर्त में डूबे और उपेक्षित पड़े हैं।
इतिहास यहां सो गया है। संस्कृति यहां रो रही है। लोक आत्मा बुझी पड़ी है। और,वशिष्ठ पुत्री माता गोमती अपने तट के उद्धार और उसकी समुचित पहचान के लिए दोनों हाथ उठाकर क्रंदन कर रही हैं। जफराबाद और जौनपुर दोनों रोते हुए शहर होकर रह गए हैं।
इस स्थति को बदलने की जरूरत है। जिसकी शुरुआत जफराबाद के धूल धूसरित पड़े मनहेच किले का जीर्णोद्धार करने और उसे पूरे पूर्वांचल का शौर्य स्थल बनाने से की जा सकती है। जहां समस्त पूर्वांचल से शौर्य, साधना और सत्याचरण की स्मृतियां इकट्ठी की जाएं , और जहां से मौजूदा समय और आगे के लिए भी शौर्य, साधना और सत्याचरण के बीज बोये जाएं। मनहेच का ऐसा ही इतिहास रहा है। 11-12 वीं सदी से दर्ज़ ज्ञात इतिहास में मनहेच राष्ट्र रक्षा के अप्रतिम दुर्ग के रूप में जाना जाता रहा है। इसे आसनी किला भी कहा जाता था। आसनी यानी बिजली के गति से प्रहार करने वाले योद्धा। इस्लामी हुकूमत के पहले कानपुर से लेकर काशी तक का इलाका भारत के अन्तर्कोट के रूप में जाना जाता था। मनहेच इस अन्तर्कोट की रक्षा का प्रमुख दुर्ग तो था ही, पश्चिमोत्तर सीमा से होने वाले हमलों के खिलाफ लड़ने के लिए आसनी योद्धा भी यहीं से जाते थे। यह परंपरा 1857 की क्रांति और उसके बाद गांधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन में भी कायम रही। दोनों ही आंदोलनों में पूर्वांचल ने पहली कतार में खड़े होकर हिस्सा लिया।
मनहेच का अर्थ है विद्या भूमि। जहां से विद्या के स्रोत फूटते हों। इस्लामी हुकूमत के पहले जफराबाद और मनहेच किले की यही ख्याति थी। ऐसा इसके दस महाविद्याओं का केंद्र होने की वजह से था। पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान द्वारा किये गए ऐतिहासिक शोध इस बात का भी संकेत करते हैं कि जफराबाद सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की राजधानी था। मनहेच .उनका महल था। वह स्थल जहां से वे सशरीर स्वर्ग गये, और जहां से उनकी समस्त प्रजा भी एक दिन के लिए सशरीर स्वर्ग ले जाई गयी। इस्लामी साक्ष्य भी मनहेच किले के बहुत पवित्र स्थल होने की पुष्टि करते हैं। मनहेच किले को जफ़र शाह तुंगलक ने 1321 में जीता और पुराने शहर का नाम बदल कर अपने नाम पर जफराबाद रखा। इस किले को जीतने के लिए उसे धूम्राक्ष साधुओं ( मखदूम) की भी मदद लेनी पड़ी थी। धूम्राक्ष साधु शेख सदरुद्दीन उसके साथ आये थे। मनहेच किले के उत्तरी छोर पर उनकी दरगाह है। इसे गरीबों का मक्का-मदीना कहा जाता है। माना जाता है कि जिनके पास मक्का-मदीना जाने का खर्च न हो, वे यहां आकर वही पुण्य पा सकते हैं। यहां पढ़ी दो रकात की नमाज को भी मक्का-मदीना में पढ़ी पांच रकात की नमाज के बराबर माना जाता है। जफराबाद के ऐसी प्रतिष्ठा रही कि धूम्राक्षों, सय्यदों और सूफियों ने इसे अपना केंद्र ही बना लिया, जहां से उन्होंने ढाका तक धर्म का प्रचार किया। मनहेच शौर्य, साधना और सत्याचरण का साझा केंद्र है। इसकी प्रतिष्ठा पूरे पूर्वांचल के सांस्कृतिक विकास को आगे बढ़ाएगी, काशी और अयोध्या के विकास को पूरा करेगी; और पर्यटन के लिए एक नया केंद्र भी स्थापित करेगी।
जन अभियान की इस मांग को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को भेजा जा रहा है। एक प्रतिनिधिमंडल भी इस सम्बन्ध में उनसे जल्द ही मुलाकात करेगा। इस मांग के समर्थन में ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान भी शुरू किया गया है। जन संकल्प सभा के अध्यक्षता छोटेलाल सिंह और संयोजन प्रो. बी पी सिंह ने किया। इतिहास और संकल्प पत्रकार-इतिहासकार ओम प्रकाश ने रखा। सभा में उपस्थित प्रमुख लोग थे- सर्वश्री चित्रसेन सिंह, बृजभान सिंह, राम नवल सिंह, रत्नाकर सिंह, संतोष सिंह, विनोद सिंह महेंद्र सिंह, रवींद्र प्रताप सिंह, रामपाल सिंह, संजीव सिंह, ध्रुवराज सिंह, मुन्ना मिश्रा ,अजीत सिंह, योगेंद्र प्रताप सिंह, रवि सिंह, संजय सिंह, राकेश सिंह, प्रमोद कुमार सिंह, महेश सिंह , भावेश सी झा, रवि शंकर सिंह, रणजीत सिंह , वीरेंद्र सिंह और सतीश सिंह।
स्मरणीय है कि पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान ने इसके पहले भोजपुरी में फ़ैली अश्लीलता के खिलाफ, और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने और शिक्षा और रोजगार में स्थानीय भाषाओँ को महत्व देने के दो बड़े सफल जन अभियान चलाये हैं।